Sunday, 26 August 2012

स्‍वस्‍थ परिवारहेतु मुख्‍य बातें


स्‍वस्‍थ परिवारहेतु मुख्‍य बातें

                महिलाओं और बच्‍चों दोनो के स्‍वास्‍थ्‍य में दो बच्‍चों के जन्‍म में कम से कम दो वर्ष के अंतर, 18 वर्ष की आयु से पहले गर्भ धारण न करके तथा कुल तीन अथवा कम गर्भधारण के द्वारा महत्‍वपूर्ण सुधार किया जा सकता है। बच्‍चों के पालन पोषण हेतु कुछ प्रमुख बातें निम्‍नवत है:

  • गर्भधारण करने के दौरान जोखिम से बचने के लिए, सभी गर्भवती महिलाओं के प्रसूतिपूर्व देखभाल हेतु स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ता के पास जाना चाहिए और सभी प्रसव प्रशिक्षित दाई द्वारा सहायता प्राप्‍त होने चाहिए।
  • शिशु के जीवन के आरंभिक महीनों में मां का दूध ही सबसे उत्तम खाद्य और पेय आहार है। जब शिशु 4 से 6 माह के हो जाते हैं तब उन्‍हें मां के दूध के अतिरिक्‍त अन्‍य आहार की भी आवश्‍यकता होती है।
  • तीन वर्ष से कम आयु के बच्‍चों की विशेष खानपान संबंधी आवश्‍यकताएं होती है। उन्‍हें दिन में 5 से 6 बार खाना चाहिए। उनके आहार को और पोषक बनाने के लिए उनके खाने में मसली हुई सब्जियां तथा वसा अथवा तेल भी दिया जाना चाहिए।
  • अतिसार से बच्‍चे के शरीर से काफी अधिक तरल पदार्थ निकल जाने के कारण उसकी मृत्‍यु भी हो सकती है। अत: बच्‍चे में जितनी बार भी दस्‍त के द्वारा शरीर से तरल पदार्थ की कमी होती है उसकी प्रतिपूर्ति बच्‍चे को अत्‍याधिक मात्रा में सही तरल पदार्थ जैसे मां का दूध, घर पर बने तरल पदार्थ जैसे दाल का पानी, चावल का पानी, बटर मिल्‍क अथवा ओरल रिहाइड्रेशन सस्‍पेंशन (ओआरएस) देकर की जानी चाहिए।
  • टीकाकरण कई बीमारियों से बचाता है जिनके कारण कम विकास, निशक्‍तता और मृत्‍यु हो सकती है। समग्र टीकाकरण बच्‍चे के पहले वर्ष के दौरान पूरा करा लिया जाना चाहिए और डेढ़ साल पर बूस्‍टर डोज दी जानी चाहिए।
  • अधिकांश सर्दी खांसी स्‍वत: ठीक हो जाते हैं, लेकिन यदि बच्‍चे की खांसी में सांस सामान्‍य से तेज चल रही हो तो बच्‍चा गंभीर रूप से बीमार हो सकता है और तब यह अनिवार्य है कि तत्‍काल स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र में जाया जाए। खांसी से ग्रस्‍त बच्‍चे को अत्‍यधिक मात्रा में तरल आहार और पेय देना चाहिए।
  • कई बीमारियां कीटाणुओं के मुंह में जाने से होती है। इनकी रोकथाम उचित शौचालय के उपयोग द्वारा, शौच जाने के पश्‍चात और भोजन से पहले साबुन और पानी से हाथ अच्छे से धोकर की जा सकती है। खाने और पानी को स्‍वच्‍छ रखकर और पीने के पानी को उबालकर, य‍दि इसकी आपूर्ति सुरक्षित पाइपलाइन से नहीं की जा रही है, कई प्रकार की बीमारियों से बचाव किया जा सकता है।
  • अभिभावकों को बच्‍चे की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए और साथ ही वह जिन खिलौनों से खेलता है उनकी प्रणाली के बारे में जानकारी भी होनी चाहिए।

टायफायड

टायफायड

टायफायड का बुखार कैसे फैलता है?
टायफाइड साल्‍मोनेला टाइफी नामक बैक्‍टीरिया के कारण होता है जो कि केवल मनुष्‍यों में पाया जाता है। जिन व्‍यक्तियों को टायफायड का बुखार होता है उनके आंत्रीय मार्ग और रक्‍त में बैक्‍टीरिया होता है। साथ ही कुछ लोग जिनका बुखार तो ठीक हो जाता है लेकिन उनमें बैक्‍टीरिया मौजूद होते है। रूग्‍ण व्‍यक्ति और संवाहक दोनों के ही मल से एस. टाइफी बाहर आता है।
किसी व्‍यक्ति को टायफायड हो सकता है यदि वह ए.टाइफी बैक्‍टीरिया से ग्रस्‍त व्‍यक्ति का खाना खा लेता है अथवा पानी पी लेता है। उन्‍हें तब भी टायफायड हो सकता है यदि एस. टाइफी बैक्‍टीरिया से संक्रमित सीवेज का पानी पेयजल अथवा खाद्य पदार्थ धोने के पानी में मिल जाता है।
टायफायड से कैसे बचा जा सकता है?
निम्‍नलिखित आधारभूत कार्यों द्वारा टायफायड के बुखार से बचा जा सकता है:
  • जोखिमपूर्ण खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों से बचे।
  • टायफायड के बुखार से बचने के लिए टीका लगाना।
  • बोतलबंद, पानी खरीदें अथवा पीने से पहले पानी को उबाल लें।
  • यदि बर्फ बोतलबंद पानी अथवा उबले हुए पानी से न बनी हो तो बिना बर्फ के पेय पदार्थ मांगें।
  • कच्‍चे सब्जियों और फलो जिन्‍हें छीला नही जा सकता, न खाएं। लेट्यूस जैसी सब्जियां सरलता से संक्रमित हो जाती है और इन्‍हें अच्‍छी तरह से धोना काफी कठिन है।
  • सड़क किनारे खोमचे वालों से खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ नहीं लेना चाहिए।
यदि टायफायड की संभावना हो तो क्‍या करना चाहिए?
यदि टायफायड की संभावना हो तो तत्‍काल डॉक्‍टर से संपर्क करना चाहिए। सामान्‍यतया तीन में से एक एन्‍टीबायोटिक दी जाती है। ये हैं एम्‍पीसिलीन, ट्रायमेथोप्रिम-सल्‍फामी थोक्‍सेजोल और सिप्रोफ्लोक्‍सेसिन। अक्‍सर व्‍यक्ति को एन्‍टीबायोटिक से 2-3 दिन में ठीक महसूस होने लगता है और मृत्‍यु कभी-कभार ही होती है। लेकिन जो व्‍यक्ति उपचार नहीं करते उन्‍हें कई सप्‍ताह अथवा महीनों तक बुखार रहता है और लगभग 20 प्रतिशत लोगों की संक्रमण की जटिलता के कारण मृत्‍यु होती है।

Bunty Chandrasen@9770119294

Wednesday, 22 August 2012

बीयर पीने से वज़न घटता है


बीयर पीने से वज़न घटता है




गुर्दे की पथरी के कुछ प्राकृतिक उपाय


गुर्दे की पथरी के कुछ प्राकृतिक उपाय


Kidney stones in hindiगुर्दे की पथरी एक आम बीमारी है जो अक्सर गलत खान पान की वजह से होता है। जरुरत से कम पानी पीने से भी गुर्दे की पथरी का निर्माण होता है।

लक्षण

पेशाब में जलन, मूत्र विसर्जन के समय अक्सर पीड़ा का एहसास होना , चक्कर आना, भूख मिटना, पेशाब में बदबू, पेशाब में खून  के अंश का पाया जाना इत्यादि गुर्दे की पथरी होने के कुछ आम लक्षण हैं। जिन महिलाएं को मासिक धर्म के दौरान पेट (उदर)  के निचले भाग में अक्सर दर्द की शिकायत रहती हो उन्हें भी अपनी डाक्टरी जांच अवश्य करवानी चाहिए क्योंकि यह भी गुर्दे की पथरी होने का संकेत हो सकता है।

गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए अक्सर लोग कोई ऐसा समाधान चाहते हैं जिसका कोई कुप्रभाव न हो। ऐसा ही एक उपाय है प्राकृतिक उपाय जो गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत ही कारगर साबित होता है साथ हीं साथ शरीर पर इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता।


गुर्दे की पथरी  दूर करने के कुछ  प्राकृतिक  उपाय


अनार के  बीज और हार्स ग्राम: अनार मीठे हों या न हों, उनके बीज गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं अहम भूमिका निभाते हैं। एक चमच्च  अनार के बीज  को पीस कर उसका पेस्ट बना लें और फिर दो चमच्च होर्से ग्राम तथा अनार के बीज के पेस्ट को एक कप पानी में एक साथ मिलाकर सूप बना लें। ठंढा होने पर इस सूप का सेवन करें। कुछ दिन लगातार इस सूप का सेवन करने से आपको गुर्दे की पथरी की समस्या से काफी हद तक छुटकारा मिल जायेगा।

निम्बू का रस एवं जैतून का तेल (ओलिव आयल): जैतून का तेल (ओलिव आयल) एवं निम्बू का रस मिलकर तैयार किया गया मिश्रण गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत हीं कारगर साबित होता है। 60 मिली लिटर  निम्बू के रस में उतनी हीं मात्रा में जैतून का तेल (ओलिव आयल) मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इनके मिश्रण का सेवन करने के बाद भरपूर मात्रा में पानी पीते रहें।
इस प्राकृतिक उपचार से बहुत जल्द हीं आपको गुर्दे की पथरी से निजात  मिल जायेगा साथ हीं साथ पथरी से होने वाली पीड़ा से भी आपको मुक्ति मिल जाएगी।

किडनी बिन्स : किडनी की पथरी यानि गुर्दे की पथरी को दूर करने का किडनी बिन्स बहुत हीं प्रभावकारी प्राकृतिक उपचार है। किडनी बिन्स यानि सेम की फली से गुर्दे की पथरी के उपचार हेतु आप औषधी तौयार कर सकते हैं। सबसे पहले  आप  किडनी बिन्स यानि सेम की फली सेम से अगल कर लें और उन्हें पतले दुकड़ों में तरास/काट  लें। अब इन टुकड़ों का 50-60 ग्राम लें और लगभग 4 लिटर स्वच्छ/शुद्ध पानी में तकरीबन 6 घंटों तक धीमी आंच पर उबालें। तत्पश्चात रस को साफ कपड़े या छलनी से छान लें और तकरीबन ६ घंटे तक ठंढा होने दें। गुर्दे की पथरी के मरीजों को सलाह दी जाती है कि इलाज के पहले दिन वे इसके रस को हर दो घंटे पर पीते रहें। अगले दिनों में भी या अगले हफ्ते में भी जितनी ज्यादा बार इसे पियेंगे उतना हीं ज्यादा फायदा मिलेगा।  तैयार किये जाने के बाद इस रस का असर 24 घंटों के बाद कम होने लगता है इसलिए हमेशा ताजे रस का सेवन करना हीं फायदेमंद होता है।

कार्बनिक अजवाइन: जिन लोगों को गुर्दे की पथरी होने का खतरा हो उनके लिए कार्बनिक अजवाइन का नियमित रूप से सेवन करना अनिवार्य है। कार्बनिक अजवाइन के बीज एवं सब्जी, दोनों हीं गुर्दे के लिए टॉनिक का काम करते हैं। ये आपको गुर्दे की पथरी से बचाते हैं और यदि आप इसके शिकार हो गए हैं तो उसे दूर करने में काफी मददगार साबित होते हैं। इसे मसाले के रूप में उपयोग किया जा सकता है अथवा पानी में उबाल कर चाय की तरह पिया जा सकता है।

अनियमित माहवारी के कारण


अनियमित माहवारी के कारण

Aniyamit mahawaari ke karan
माहवारी के साथ निपटना सच में बहुत मुश्किल हो सकता है। ऐंठन, पीएमएस के साथ, इसके अलावा और बहुत कुछ! लेकिन जब वे अनियमित होते है, तो उनके साथ निपटना मुश्किल हो सकता है। समझने और अनियमित माहवारी का उपचार करने में सक्षम बनने के लिए, सबसे जरूरी अंतर्निहित शरीर रसायन शास्त्र को समझना चाहिए जो कि उन्हे पैदा कर सकता है।

•    अपने प्रजनन वर्षों में, अनियमित माहवारी के बारे में चिंता करने वाली कोई बात नहीं है। कभी कभी शरीर कुछ वर्षों के लिए आपके शरीर में हार्मोन परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए और आपके नियमित मासिक धर्म चक्र में एक संतुलन प्राप्त करता है।

•    रजोनिवृत्ति के करीब भी, आप अनियमित महावारी का अनुभव कर सकते है। यह भी पूरी तरह से सामान्य है। मासिक धर्म चक्र में परिवर्तन के इस समय के दौरान, अंततः महावारी पूरी तरह से बंद हो जाती है।

•    गर्भावस्था अनियमित माहवारी के लिए एक और कारण है। यदि आप को गर्भपात हुआ है, तो आपको होम प्रग्नेंसी टेस्ट करवाने चाहिए।

•    भावनात्मक तनाव भी आपके शरीर में हार्मोन में परिवर्तन, आपकी माहवारी को अनियमित बनाने के लिए कारण हो सकता है। गंभीर भावनात्मक तनाव से बचने के लिए, मेडिटेशन या योगा, या मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सक से परामर्श करें।

•    कुछ गर्भाशय ग्रीवा असामान्यताएं जैसे कि ग्रीवा संबंधित पॉलिप, गर्भाशय फाइब्रॉएड और
एंडोमेटरिओसिस(एंडोमेटरिओसिस लक्षण) भी अनियमित माहवारी के कारण हो सकते है।

•    कभी कभी अचानक और महत्वपूर्ण रूप से वजन बढ़ना या कम होना आपकी माहवारी को अनियमित बनाने या न होने का कारण हो सकते है।

•    खान-पान संबंधी विकार जैसे कि एनरेक्सीआ या ब्यूलीमीअ भी अनियमित माहवारी के कारण हो सकते है।
•    अत्यधिक शराब का सेवन भी आपके हार्मोन चयापचय को बिगाड़ता है, जिसके परिणास्वरूप अनियमित माहवारी का कारण बनता है।


गर्भनिरोधक गोलियों के दुष्प्रभाव


गर्भनिरोधक गोलियों के दुष्प्रभाव


कुछ दुष्प्रभाव भी हैं गर्भनिरोधक गोलियों के

गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल अनचाहे गर्भ से बचने का सबसे आम उपाय है। लेकिन एक ताजा शोध से पता चला है कि इन गोलियों के इस्तेमाल के नुकसान भी हैं। ऐसे में गर्भनिरोधक के रूप में ज्यादा सुरक्षित व आसान उपाय खोजने की जरूरत बढ़ गई है।

गोलियों का असर

गर्भनिरोधक गोलियों के चलते प्रजनन संबंधी समस्याएं आ सकती हैं। गर्भपात और प्रेगनेंसी के बीच लंबे अंतराल के खतरे बढ़ जाते हैं। गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से महिलाओं का प्रतिरोधी तंत्र भी कमजोर हो सकता है। उनमें मेजर हिस्टोकंपेटिबिलिटी काम्पलेक्स (एमएचसी) नामक विभिन्न एमएचसी अणुओं की संख्या घट सकती है। ये अणु विभिन्न बीमारियों से लड़ने का काम करते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि बीमारियों से लड़ने के लिए शरीर में विभिन्न एमएचसी की मौजूदगी अनिवार्य है। शोध के मुताबिक इसका असर पैदा होने वाले बच्चों पर भी पड़ सकता है। उनकी प्रतिरोधक क्षमता घट सकती है।

शोध

यह निष्कर्ष ब्रिटेन की लिवरपूल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के एक दल द्वारा किए गए अध्ययन पर आधारित है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में 100 महिलाओं को शामिल किया। (द इंडिपेंडेंट)

जानलेवा हो सकता है धड़ल्ले से एंटीबायोटिक लेना


एंटीबायोटिक

जानलेवा हो सकता है धड़ल्ले से एंटीबायोटिक लेना



डायरिया होने का खतरा, स्थिति गंभीर होने पर जानलेवा हो जाती है बीमारी

नई दिल्ली, प्रेट्र : आम लोग यही मानते हैं कि एंटीबायोटिक दवाओं का कोई खास नुकसान नहीं है। इसलिए वे जरा-सी सर्दी-जुकाम या मामूली दर्द होने पर भी एंटीबायोटिक ले लेते हैं। लेकिन ऐसा करना जानलेवा हो सकता है। एक अध्ययन से यही बात सामने आई है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि अलग-अलग बीमारियों के लिए एंटीबायोटिक दवाएं लेने वाले 15 फीसदी मरीजों को डायरिया हो गया। यह डायरिया एंटीबायोटिक से जुड़े डायरिया के रूप में जाना जाता है और एक खास जीवाणु 'क्लोस्टि्रडियम  डिफीसाइल' के चलते होता है। एम्स में माइक्रोबायोलाजी विभाग की प्रोफेसर रमा चौधरी के अनुसार यह बीमारी गंभीर होने पर जानलेवा भी हो सकती है।

अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार रोगी को सही जांच के बाद और जरूरी होने पर ही एंटीबायोटिक दवा देनी चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को लेकर जागरूकता फैलाने की भी जरूरत है। यह जागरूकता न केवल मरीजों में, बल्कि केमिस्टों, नर्सो और कम जानकारी वाले डाक्टरों के बीच भी फैलानी चाहिए।

दवा समझकर ले सकते हैं रेड वाइन


दवा समझकर ले सकते हैं रेड वाइन

प्रतिदिन एक-दो गिलास से ज्यादा नहीं, प्रोस्टेट कैंसर की रोकथाम में मददगार
बढ़ती उम्र में पीना अगर मजबूरी है तो रेड वाइन पीजिए। लेकिन नशा नहीं, दवा समझकर। वह भी एक-दो ग्लास से ज्यादा नहीं। अमेरिका में प्रकाशित एक अध्ययन के नतीजे बताते हैं-रेड वाइन प्रोस्टेट कैंसर की रोकथाम में मददगार है।

बर्मिघम की अलबामा यूनिवर्सिटी (यूएबी) के शोधकर्ताओं ने रेड वाइन में पाए जाने वाले कंपाउंड यानी यौगिक को चूहों को लगातार खिलाया। यह यौगिक रेसवेराट्राल के नाम से जाना जाता है। इन चूहों में जानलेवा बीमारी प्रोस्टेट कैंसर की संभावना 87 फीसदी कम पाई गई। अगर इनमें कैंसर पाया भी गया तो ट्यूमर अपेक्षाकृत कम खतरनाक थे। इन चूहों में रेसवेराट्राल न दिए जाने वाले चूहों के मुकाबले ट्यूमर के आकार में वृद्धि रुकने की संभावना 47 फीसदी ज्यादा देखी गई। टयूमर बढ़े भी तो गति काफी धीमी रही।
यह अध्ययन यूएबी में फार्माकोलाजी और टाक्सिकोलाजी डिपार्टमेंट के कोरल लामार्टिनियर के नेतृत्व में किया गया है। लामार्टिनियर बताते हैं-रेड वाइन के जरिए रेसवेराट्राल लेने से शरीर में कैंसर रोधी तत्वों में व्यापक वृद्धि होती है। साथ ही हृदय के लिए भी फायदेमंद है। लामार्टिनियर कहते हैं-मैं हर शाम एक ग्लास रेड वाइन लेता हूं, क्योंकि प्रोस्टेट कैंसर को लेकर चिंतित हूं। इस बीमारी की चपेट में मेरे परिवार के लोग आते रहे हैं।

अध्ययन में कुछ दिक्कतों की ओर भी इशारा किया गया है, मसलन-प्रोस्टेट कैंसर के मामले में चूहों को जितनी मात्रा में प्रतिदिन रेसवेराट्राल दिया गया, उतना वह एक बोतल रेड वाइन में पाया जाता है। पिछले साल यूएबी में किए गए एक अध्ययन के दौरान यह बात भी सामने आई थी कि रेसवेराट्राल स्तन कैंसर की रोकथाम में भी कारगर है।

प्रोस्टेट कैंसर


पौरुष ग्रंथि के उतकों (टिश्यू) में पनपने वाला यह कैंसर प्राय: उम्रदराज लोगों में पाया जाता है। सामान्य तौर पर पौरुष ग्रंथि अखरोट जैसी होती है, लेकिन कैंसर की चपेट में आने के बाद इसके आकार में वृद्धि होने लगती है और पेशाब का प्रवाह रुकने लगता है।
By: Bunty Chandrasen@9770119294

Monday, 20 August 2012

दुबलेपन के कारण व उपचार

दुबलेपन के कारण व उपचार

आयुर्वेद के अनुसार अत्यंत मोटे तथा अत्यंत दुबले शरीर वाले व्यक्तियों को निंदित व्यक्तियों की श्रेणी में माना गया है। वस्तुतः कृशता या दुबलापन एक रोग न होकर मिथ्या आहार-विहार एवं असंयम का परिणाम मात्र है। 

अत्यंत कृश शरीर होने पर शरीर की स्वाभाविक कार्य प्रणाली का सम्यक रूप से निर्वहन नहीं होता, जिसके फलस्वरूप दुबले व्यक्तियों को अनेक व्याधियों से ग्रसित होने का भय तथा शीघ्र काल कवलित होने की संभावना बनी रहती है।

अत्यंत दुबले व्यक्ति के नितम्ब, पेट और ग्रीवा शुष्क होते हैं। अंगुलियों के पर्व मोटे तथा शरीर पर शिराओं का जाल फैला होता है, जो स्पष्ट दिखता है। शरीर पर ऊपरी त्वचा और अस्थियाँ ही शेष दिखाई देती हैं।

दुबलेपन के कारण : अग्निमांद्य या जठराग्नि का मंद होना ही अतिकृशता का प्रमुख कारण है। अग्नि के मंद होने से व्यक्ति अल्प मात्रा में भोजन करता है, जिससे आहार रस या 'रस' धातु का निर्माण भी अल्प मात्रा में होता है। इस कारण आगे बनने वाले अन्य धातु (रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्रधातु) भी पोषणाभाव से अत्यंत अल्प मात्रा में रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति निरंतर कृश से अतिकृश होता जाता है। इसके अतिरिक्त लंघन, अल्प मात्रा में भोजन तथा रूखे अन्नपान का अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से भी शरीर की धातुओं का पोषण नहीं होता।

वमन, विरेजन, निरूहण आदि पंचकर्म के अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करने से धातुक्षय होकर अग्निमांद्य तथा अग्निमांद्य के कारण पुनः अनुमोल धातुक्षय होने से शरीर में कृशता उत्पन्न होती है। अधिक शोक, जागरण तथा अधारणीय वेगों को बलपूर्वक रोकने से भी अग्निमांद्य होकर धातुक्षय होता है। अनेक रोगों के कारण भी धातुक्षय होकर कृशता उत्पन्न होती है। 

आज की टी.वी. संस्कृति, उन्मुक्त यौनाचार, युवक-युवतियों में यौनजनित कुप्रवृत्तियाँ (हस्तमैथुन आदि) तथा नशीले पदार्थों के सेवन से निरंतर धातुओं का क्षय होता है। कृशता को स्पष्टतया समझने की दृष्टि से निम्नानुसार वर्गीकृत किया जाता है। 

1. सहज कृशता 2. जन्मोत्तर कृशता

सहज कृशता : माता-पिता यदि कृश हों तो बीजदोष के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला शिशु भी सहज रूप से कृश ही उत्पन्न होता है। गर्भावस्था में पोषण का पूर्णतः अभाव होने से अथवा गर्भवती स्त्री के किसी संक्रामक या कृशता उत्पन्न करने वाली विकृति के चलते गर्भस्थ शिशु के शारीरिक अवयवों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जन्म के समय ऐसे शिशु कृश स्वरूप में ही जन्म लेते हैं। ऐसे कृशकाय शिशु की उचित देखभाल एवं समय पर चिकित्सा करने के बाद भी इसकी कृशता का पूर्ण रूप से निवारण नहीं होने पर अंततोगत्वा ये सहज कृशता के स्वरूप को प्राप्त कर जीवन पर्यंत उससे ग्रसित रहते हैं। निरंतर चिकित्सा लाभ लेते रहने पर ही इनका जीवित रहना संभव होता है।

जन्मोत्तर कृशता : अग्निमांद्य के फलस्वरूप रस धातु की उत्पत्ति अल्प मात्रा में होने से जो धातुक्षय होता है, उसे अनुमोल क्षय तथा कुप्रवृत्ति तथा अतिमैथुन से होने वाले शुक्रक्षय के फलस्वरूप अन्य धातुओं के होने वाले क्षय को प्रतिलोम क्षय कहते हैं। दुर्घटना, आघात, वमन, अतिसार, रक्तपित्त आदि के कारण अकस्मात होने वाला धातुक्षय तथा पंचकर्म के अत्याधिक प्रयोग से होने वाले धातुक्षय से भी अंत में कृशता उत्पन्न होती है। निष्कर्ष यह है कि किसी भी कारण से होने वाला धातुक्षय ही कृशता का जनक है। जन्मोत्तर कृशता के दो प्रकार संभव हैं-

लगातार उत्पन्न कृशता :अग्निमांद्य,ज्वर, पांडु, उन्माद, श्वांस आदि व्याधियों से दीर्घ अवधि तक ग्रस्त रहने पर शरीर में लगातार कृशता उत्पन्न होती है, जो धीरे-धीरे बढ़कर अंत में अतिकृशता का रूप धारण कर लेती है। शरीर की स्वाभाविक क्रिया के फलस्वरूप वृद्धावस्था में होने वाली कृशता का भी इसमें समावेश हो जाता है।

अकस्मात उत्पन्न कृशता : मधुमेह, रजक्षमा, रक्तपित्त, वमन, ग्रहणी, कैंसर आदि व्याधियों के कारण शरीर में अकस्मात कृशता उत्पन्न होती है। अवटुका ग्रंथि के अंतःस्राव की अभिवृद्धि से भी अकस्मात कृशता उत्पन्न होती है, जिसे आधुनिक चिकित्सा के अनुसार हाइपरथायरायडिज्म या थायरोढाक्सिकोसित कहते हैं। 

वैज्ञानिकों का यह भेद चरकोक्त जठराग्निवर्धन से समानता रखता है, क्योंकि जठराग्निवर्धन के संपूर्ण लक्षण इसमें घटित होते हैं। थायराइड नामक ग्रंथि के अंतःस्राव में वृद्धि होने पर इंसुलिन के द्वारा शरीर में दहन क्रिया अत्यंत तीव्र वेग से होने के कारण प्रथमतः रस, रक्तगत शर्करा का दहन होने से शर्करा की मात्रा न्यून होने पर शरीर में संचित स्नेहों तथा प्रोटीनों का दहन होने लगता है। 

इसी के परिणामस्वरूप शरीर में धातुक्षय होकर कृशता उत्पन्न होती है, इसी को भस्मक रोग की संज्ञा आयुर्वेदाचार्यों ने दी है। महर्षि चरक ने इन लक्षणों को अत्यग्नि संभव नाम दिया है।

दुबलेपन से होने वाली हानियाँ : पूर्व मे जो लक्षण बताए गए हैं, वे कृश व्यक्ति में बाहर से दिखाई देने वाले हैं। इसके अतिरिक्त शरीर की आंतरिक विकृति के फलस्वरूप जो लक्षण मिलते हैं, उनमें अग्निमांद्य, चिड़चिड़ापन, मल-मूत्र का अल्प मात्रा में विसर्जन, त्वचा में रूक्षता, शीत, गर्मी तथा वर्षा को सहन करने की शक्ति नहीं होना, कार्य में अक्षमता आदि लक्षण होते हैं। कृश व्यक्ति श्वास, कास, प्लीहा, अर्श, ग्रहणी, उदर रोग, रक्तपित्त आदि में से किसी न किसी से पीड़ित होकर काल कवलित हो जाता है।

चिकित्सा

संतर्पण : सर्वप्रथम उसके अग्निमांद्य को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। लघु एवं शीघ्र पचने वाला संतर्पण आहार, मंथ आदि अन्य पौष्टिक पेय पदार्थ, रोगी के अनुकूल ऋतु के अनुसार फलों को देना चाहिए, जो शीघ्र पचकर शरीर का तर्पण तथा पोषण करे। रोगी की जठराग्नि का ध्यान रखते हुए दूध, घी आदि प्रयोग किया जा सकता है। कृश व्यक्ति को भरपूर नींद लेनी चाहिए, इस हेतु सुखद शय्या का प्रयोग अपेक्षित है। कृशता से पीड़ित व्यक्ति को चिंता, मैथुन एवं व्यायाम का पूर्णतः त्याग करना अनिवार्य है।

पंचकर्म : कृश व्यक्ति के लिए मालिश अत्यंत उपयोगी है। पंचकर्म के अंतर्गत केवल अनुवासन वस्ति का प्रयोग करना चाहिए तथा ऋतु अनुसार वमन कर्म का प्रयोग किया जा सकता है। कृश व्यक्ति के लिए स्वदन व धूम्रपान वर्जित है। स्नेहन का प्रयोग अल्प मात्रा में किया जा सकता है।

रसायन एवं वाजीकरण : कृश व्यक्ति को बल प्रदान करने तथा आयु की वृद्धि करने हेतु रसायन औषधियों का प्रयोग परम हितकारी है, क्योंकि अतिकृश व्यक्ति के समस्त धातु क्षीण हो जाती हैं तथा रसायन औषधियों के सेवन से सभी धातुओं की पुष्टि होती है, इसलिए कृश व्यक्ति के स्वरूप, प्रकृति, दोषों की स्थिति, उसके शरीर में उत्पन्न अन्य रोग या रोग के लक्षणों एवं ऋतु को ध्यान में रखकर किसी भी रसायन के योग अथवा कल्प का प्रयोग किया जा सकता है। वाजीकरण औषधियों का प्रयोग भी परिस्थिति के अनुसार किया जा सकता है।

औषधि चिकित्सा क्रम : सर्वप्रथम रोग की मंद हुई अग्नि को दूर करने का प्रयोग आवश्यक है, इसके लिए दीपन, पाचन औषधियों का प्रयोग अपेक्षित है। अग्निमांद्य दूर होने पर अथवा रोगी की पाचन शक्ति सामान्य होने पर जिन रोगों के कारण कृशता उत्पन्न हुई हो तथा कृशता होने के पश्चात जो अन्य रोग हुए हों, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही औषधियों की व्यवस्था करना अपेक्षित है।

कृशता में उपयोगी औषधियाँ : लवणभास्कर चूर्ण, हिंग्वाष्टक चूर्ण, अग्निकुमार रस, आनंदभैरव रस, लोकनाथ रस( यकृत प्लीहा विकार रोगाधिकार), संजीवनी वटी, कुमारी आसव, द्राक्षासव, लोहासव, भृंगराजासन, द्राक्षारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, सप्तामृत लौह, नवायस मंडूर, आरोग्यवर्धिनी वटी, च्यवनप्राश, मसूली पाक, बादाम पाक, अश्वगंधा पाक, शतावरी पाक, लौहभस्म, शंखभस्म, स्वर्णभस्म, अभ्रकभस्म तथा मालिश के लिए बला तेल, महामाष तेल (निरामिष) आदि का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।

भोजन में जरूरी : गेहूँ, जौ की चपाती, मूंग या अरहर की दाल, पालक, पपीता, लौकी, मेथी, बथुआ, परवल, पत्तागोभी, फूलगोभी, दूध, घी, सेव, अनार, मौसम्बी आदि फल अथवा फलों के रस, सूखे मेवों में अंजीर, अखरोट, बादाम, पिश्ता, काजू, किशमिश आदि। सोते समय एक गिलास कुनकुने दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पिएँ, इसी के साथ एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण लें, लाभ न होने तक सेवन करें।

मॉर्निंग वॉक के नियम

मॉर्निंग वॉक के नियम

प्रातःकाल की खुली स्वच्छ वायु में भ्रमण करने से शरीर रोगमुक्त रहता है अथवा जिन रोगों से हम ग्रसित हैं, उनमें कुछ राहत अवश्य महसूस करते हैं। बच्चे हों या बुजुर्ग, महिला हो या पुरुष सभी की अच्छी सेहत हेतु प्रातः भ्रमण एक संजीवनी है। प्रातः भ्रमण सेहत बनाने का बहुत सरल, सस्ता और सुविधाजनक उपाय है। प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम होता है, क्योंकि इस समय हवा शुद्ध और प्रदूषण रहित होती है एवं प्राकृतिक छटा और सूर्योदय की लालिमा सुहावनी और शांतिप्रिय होती है।

लाभ : 

* नियमित सैर करने से न केवल मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं, बल्कि बाजुओं, पेट एवं जाँघों से भी अतिरिक्त चर्बी कम होती है। जितनी अधिक हम सैर करेंगे उतनी ही अधिक कैलोरीज बर्न होगी एवं मोटापा कम होगा। 

* प्रातःकाल की खुली स्वच्छ वायु फेफड़ों में रक्त शुद्ध करने की क्रिया को प्रभावशाली बनाती है। इससे शरीर में ऑक्सीहीमोग्लोबीन बनता है, जो कोशिकाओं को शुद्ध ऑक्सीजन पहुँचाता है। 

* हृदय, रक्तचाप, स्नायु रोग, मधुमेह आदि के रोगियों को भी प्रातः सैर करने की चिकित्सक द्वारा सलाह दी जाती है। 

* सुबह की सैर हड्डियों के घनत्व को भी बढ़ाती है। 

* टहलने से न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक क्षमता भी बढ़ जाती है एवं तनाव दूर होता है। 

* कम से कम प्रतिदिन 3 किलोमीटर एवं सप्ताह में 5 दिन अवश्य सैर करें। 

< MS', 'Arial Unicode MS'; font-size: 14px; line-height: 20px;" />* टहलने से न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक क्षमता भी बढ़ जाती है एवं तनाव दूर होता है। 

* कम से 'Arial Unicode MS'; font-size: 14px; line-height: 20px;" />
* सैर हेतु शांत वातावरण और चारों तरफ प्राकृतिक सौंदर्य वाला (बाग-बगीचा) या खुला स्थान चुनें। 

* टहलते समय हल्की गहरी साँस लेने की आदत डालें और मन में शुद्ध विचार लाएँ। 

* शरीर का तापमान सामान्य रखने हेतु शरीर को अतिरिक्त पानी चाहिए, अतः सैर पर जाने से पहले और पश्चात एक गिलास पानी अवश्य पिएँ। 

* टहलते समय किसी प्रकार का मानसिक तनाव न रखें। 

* टहलते समय अपने हाथों को नीचे की ओर रखें और बराबर हिलाते रहें, इससे स्फूर्ति मिलती है। 

* हृदय रोग, रक्तचाप या कोई अन्य गंभीर समस्या वाले रोगी टहलना प्रारंभ करने से पहले चिकित्सक की सलाह अवश्य लें। 
* प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आयु एवं क्षमता के अनुसार ही सैर करनी चाहिए। 

* सैर करते समय प्रारंभ और अंत में हमेशा गति धीमी रखें। यही नहीं प्रातः भ्रमण के पश्चात हमें संतुलित आहार की ओर भी ध्यान देना होगा। 

अपनी व्यस्त दिनचर्या में से 20-25 मिनट निकालिए, अपने तन और मन को स्वस्थ रखने हेतु संकल्प लीजिए एवं थोड़ा-सा समय गुजारिए प्रदूषण मुक्त सुबह की ठंडी सुहावनी हवा में, जो प्रकृति ने हमें उपहारस्वरूप दी है। 
By:- Bunty Primery Haelth care Center kawardha

Sunday, 19 August 2012

Health Tips

Health Tips In Hindi

Hello friends here I have giving some health care tips. And here you get Health Tips for free. You can also see health and fitness tips,health care tips, health and beauty tips, health diet, food health tips, health tips for kids, beauty health tips and much more. 

* टमाटर को पीसकर चेहरे पर इसका लेप लगाने से त्वचा की कांति और चमक दो गुना बढ़ जाती है। मुँहासे, चेहरे की झाइयाँ और दाग-धब्बे दूर करने में मदद मिलती है।

* पसीना अधिक आता हो तो पानी में फिटकरी डालकर स्नान करें।

* यदि नींद न आने की शिकायत है, तो रात्रि में सोते समय तलवों पर सरसों का तेल लगाएँ।

* एक कप गुलाब जल में आधा नीबू निचोड़ लें, इससे सुबह-शाम कुल्ले करने पर मुँह की बदबू दूर होकर मसूड़े व दाँत मजबूत होते हैं।

* भोजन के साथ 2 केले प्रतिदिन सेवन करने से भूख में वृद्धि होती है।

* आँवला भूनकर खाने से खाँसी में फौरन राहत मिलती है।

* 1 चम्मच शुद्ध घी में हींग मिलाकर पीने से पेटदर्द में राहत मिलती है।
By:- Bunty Primery Health care Center Kawardha

Friday, 3 August 2012