चेचक/चिकन पॉक्स/छोटी माता या शीतला सभी एक ही रोग है, जो छुआछुत का रोग है। रोगी को छूने से या उसके कपडे आदि पहनने से चिकन पॉक्स/चेचक एक से दुसरे को हो जातिही । चिकन पॉक्स/चेचक की फुंसियों के खुरंड हवा द्वारा इधर-उधर उड़कर रोग फैलाते हैं । इसलिए इस रोग से बचने का प्रबंध होना चाहिए। लेकिन सभी प्रान्त के रहने वाले हिन्दू चेचक को रोग न मानकर शीतला नामक माता का प्रकोप मानते हैं इलसिए चेचक की दवा न करके झाड़-फूंक ही अधिकतर करते हैं । लेकिन चेचक छूत से लगने वाला रोग हैं ।
छोटी माता जिसे चेचक भी कहा जाता हैं वह जीवन में प्राय: एक ही बार निकलती हैं । बूढ़े और जवानों को यह कम होती है । बालकों को चिकन पॉक्स/चेचक अधिक होती हैं । ठन्डे देश के निवासी गोरों तथा आदिवासियों को चेचक सबसे ज्यादा तकलीफ देती हैं । चेचक होने पर गोरे तथा आदिवासी बहुत कम बचते हैं । यह रोग अधिकतर बसंत ऋतु आने पर फरवरी-मार्च में फैलता हैं ।
चेचक/चिकन पॉक्स और छोटी माता रोग के लक्षण
- रोगी को कम्प लग कर बड़े जोर का बुखार होता हैं । बुखार के साथ, उलटी, उबकाई, सिरदर्द, बेचैनी आदि लक्षण वर्तमान रहते हैं ।
- तीसरे या चौथे दिन शरीर पर लाल-लाल निशान दिखलाई देते हैं । ये निशान सबसे पहले माथा, गर्दन, छाती आदि में दीखते हैं । बाद में समूचे शरीर में फ़ैल जाते हैं ।
- भयानक चेचक होने से नाक, आँख, जीभ आदि जगहों में भी फुंसियाँ निकल छालों को तरह हो जाती हैं ।
- निकलने वाली फुंसियाँ 48 घंटो के भीतर पहले द्रव पदार्थ से भर कर उभरे हुए छालों की तरह आती हैं । फिर 48 घंटो के भीतर पीव पैदा करती हैं
- जब रोग में आराम होने लगता है तब प्राय: 11 वें दिन फुंसियाँ सुख कर खुरण्ड पैदा होने लगते हैं और रोग के सब लक्षण कम हो जाते हैं तथा रोगी 3-4 दिन के भीतर बिलकुल स्वस्थ हो जाता हैं ।
- जब यह रोग बढाव पर होता हैं तो बुखार बढ़ जाता हैं। रोगी प्रलाप करने लगता हैं, शरीर कांपने लगता है और रोगी अंत में प्राण त्याग देता है ।
- छोटी माता /चेचक के कारण अक्सर निमोनिया, आँख फूली, अंधापन आदि उपद्रव पैदा हो जाता हैं ।
- चिकन पॉक्स/चेचक में आराम होने पर मनुष्य को कुरूप बना देती हैं।
- चेचक के दाग जिन्दगी भर बने रहते हैं । चेचक अपना प्रमाण जीवन भर के छोड़ देती हैं ।
चिकन पॉक्स/चेचक की चिकित्सा :-
- जिस दिन चेचक के दाने निकालें उस दिन रोगी को 5-7 मुनक्का के बीज निकल कर खिला देने चाहिए।
- दूध में जरा सा केशर मिला कर पिलाना चाहिए इससे चेचक का जहर खून से निकल कर फुंसियों में आ जाता हैं ।
- घर के बाहर या द्वार या खिड़कियों पर जहाँ से धूप आती हो उधर लाल रंग कर कपड़ा लटका देना चाहिए ।
- प्यास की अधिकता हो तो ज्वरोक्त ‘षडंग पानीय’ पीने को देना चाहिए ।
- निमोनिया, खांसी आदि उपद्रव के होने से कोई नुकसान नहीं होता हैं । लेकिन आँखों की सफाई और रक्षा का पूरा ध्यान देना चाहिए ।
- नीम के पत्तों को चारपाई पर बिछाना चाहिए तथा नीम की टहनी से मक्खी हटाना चाहिए ।
चिकन पॉक्स/चेचक से बचने के उपाय :-
- चिकन पॉक्स/चेचक से बचने का एक मात्र निश्चित उपाय हैं टिका लगवाना । बच्चे के जन्म के 12 महीने बाद ही टिका अवश्य लगवा देना चाहिए। बच्चे को टिका लगवाने के बाद चेचक बिलकुल नहीं होती हैं । टीके का प्रभाव तीन वर्ष तक होता हैं । अत: तीन वर्ष बाद पुन: टिका लगवाना चाहिए ।
- वसंत ऋतु के आरम्भ में प्राय: चेचक फैलती हैं इसलिए उस समय घर के सभी लोगों को टिका लगवाना चाहिए।
- घर में चिकन पॉक्स/चेचक होने पर सब लोगों को खूब सावधान रहना चाहिए । रोगी के छूने पर साबुन लगाकर हाथ धोना चाहिए ।
- रोगी के कमरे में किसी भी बच्चे को नहीं घुसने देना चाहिए ।
- घर में बड़े लोगों को भी बिना आवश्कयता के रोगी के पास न जाना चाहिए । रोगी के बिस्तरे और कपडे किसी की व्यवहार में न लाना चाहिए।
- घरभर में दो बार धूप देना चाहिए। हर तरह सफाई का ध्यान रखने से रोग फैलने नहीं पाता ।
बिना सावधानी के घर में यह रोग हो जाने से सब बच्चों में फैलते हुए देखा गया । रोगी बालक को चेचक के खुरण्ड भी नहीं नोंचने देने चाहिए ।
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