Monday, 17 July 2017

शिशु का टीकाकरण - सम्पूर्ण विवरण

टीकाकरण किस तरह कार्य करता है?

हमारे शरीर में संक्रमणों से बचने के लिए प्राकृतिक सुरक्षा होती है। इसे प्रतिरक्षण क्षमता (इम्युनिटी) कहा जाता है। जब हमें कोई संक्रमण होता है, तो इससे लड़ने के लिए हमारा शरीर रसायनों का उत्पादन करता है, जिन्हें एंटीबॉडीज कहा जाता है।

संक्रमण के ठीक होने के बाद भी ये एंटीबॉडीज हमारे शरीर में ही रहते हैं। ये हमें संक्रमण पैदा करने वाले उस जीव के प्रति प्रतिरक्षित बना देते हैं। यह प्रतिरक्षण क्षमता थोड़े समय के लिए या फिर जिंदगी भर भी हमारे साथ बनी रह सकती है।

टीकाकरण के जरिये हमारे शरीर का सामना संक्रमण से कराया जाता है, ताकि शरीर उसके प्रति प्रतिरक्षण क्षमता विकसित कर सके। कुछ टीके मौखिक रूप से दिए जाते हैं, वहीं कुछ अन्य इंजेक्शन के जरिये दिए जाते हैं।

टीके का फायदा यह है कि संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षित होने के लिए हमें पूरी तरह बीमार होने की जरुरत नहीं है। हल्का संक्रमण होने से भी टीकाकरण के जरिये हम उसके खिलाफ प्रतिरक्षित हो सकते हैं। इसी वजह से हम उस बीमार के होने से पहले ही उसके प्रति सुरक्षित हो जाते हैं।


शिशु का टीकाकरण करवाना इतना महत्पवपूर्ण क्यों है?

बचपन में टीकाकरण करवाने से शिशु अपनी जिंदगी की शुरुआत से ही संभवतया गंभीर बीमारियों से प्रतिरक्षित हो जाता है। 

अगर, आपके शिशु को किसी बीमारी के खिलाफ टीका लगा हुआ है, तो उसे दोबारा वह बीमारी होने की संभावना काफी हद तक कम होती है। यह इसलिए क्योंकि आपके बच्चे ने उस बीमारी के खिलाफ एंटीबॉडीज का उत्पादन पहले ही कर लिया है।

सभी समुदायों का सार्वजनिक टीकाकरण होने से माहमारी फैलने की संभावना काफी कम हो जाती है। इस तरह के कार्यक्रमों के जरिये ही बड़ी माता/चेचक (स्मॉलपॉक्स) और पोलियो जैसे रोग पूरी तरह समाप्त हो पाए हैं।

जन्म के शुरुआती कुछ सालों में बच्चे को इतने सारे टीके लगवाने क्यों जरुरी हैं?
जन्म के बाद शुरुआती सालों में शिशु की प्रतिरक्षण प्रणाली विकसित हो रही होती है। पहले कुछ महीनों तक तो शिशु संक्रमणों से सुरक्षित रहता है। क्योंकि जब वो आपके गर्भ में पलता है और आप उसे स्तनदूध पिलाती हैं, तो उसे आपके द्वारा एंटीबॉडीज मिलती हैं। लेकिन बाद में ये एंटीबॉडीज खत्म होने लगते हैं, और शिशु को स्वयं अपनी एंटीबॉडीज उत्पन्न करने की जरुरत होती है। टीके शिशु के शरीर को ये एंटीबॉडीज विकसित करने के लिए प्रेरित करते हैं।

टीकाकरण के अलग-अलग प्रकार कौन से हैं?

टीकाकरण निम्नांकित तीन प्रकार का होता है:
  • प्राथमिक टीकाकरण: इसमें एक से लेकर पांच खुराकें शामिल हो सकती हैं। ये खुराकें शिशु के जन्म के समय शुरु होती हैं और उसकी जिंदगी के शुरुआती कुछ सालों तक जारी रहती हैं। ये शिशु के शरीर में किसी विशेष बीमारी के खिलाफ प्रतिरक्षण क्षमता विकसित करती हैं। इन टीकों की सभी खुराकें लेना आवश्यक है।

  • बूस्टर टीकाकरण: बूस्टर खुराकें प्राथमिक टीकाकरण के प्रभाव को बढ़ाने के लिए दी जाती हैं। जैसे-जैसे समय बीतता है, एंटीबॉडीज का स्तर कम होने लगता है। परिणामस्वरूप शरीर में बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। बूस्टर खुराक शरीर में एंटीबॉडीज का जरुरी स्तर बनाए रखती है।

  • सार्वजनिक टीकाकरण: किसी विशेष बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए इस तरह का टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जाता है। सार्वजनिक टीकाकरण कार्यक्रम अधिकांशत: सरकार द्वारा देश की जनता के स्वास्थ्य कल्याण के लिए चलाए जाते हैं। बड़ी माता/चेचक और हाल ही में पोलियो भी इस तरह के कार्यक्रमों के जरिये ही समाप्त हो पाएं हैं।

क्या टीकाकरण सुरक्षित है?

विशेषज्ञों का मानना है कि टीकाकरण आपकर शिशु के लिए पूरी तरह सुरक्षित है। इस्तेमाल की मंजूरी देने से पहले टीकों की अच्छी तरह से जांच की जाती है। इन पर निंरतर निगरानी रखी जाती है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि बीमारियों से शिशु की रक्षा करने के लिए ये पूरी तरह प्रभावी और सुरक्षित हैं।

क्या टीकाकरण के कोई अन्य दुष्प्रभाव भी हैं, जिनके बारे में मुझे जानना चाहिए?

टीकाकरण के बाद करीब 10 मिनट तक आपको डॉक्टर के क्लिनिक में ही रहने के लिए कहा जा सकता है। यह इसलिए ताकि अगर शिशु को इंजेक्शन के प्रति कोई प्रतिक्रिया होती है, तो डॉक्टर तुरंत उसकी जांच कर सकें।

इंजेक्शन के जरिये दिए जाने वाले टीकों से शिशुओं और बच्चों को थोड़ी परेशानी हो सकती है। इससे वे चिड़चिड़े और अस्वस्थ महसूस कर सकते हैं। इंजेक्शन लगाई गई जगह अक्सर लाल और सूजी हुई हो जाती है। आपके शिशु को हल्का बुखार भी आ सकता है। 

अगर, शिशु को काफी तेज बुखार हो या ज्वरीय आक्षेप (फेब्राइल कनवल्जन) हो, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर को दिखाएं।

                                    

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