Sunday, 23 September 2012

टांसिल को हल्के में न लें


टांसिल को हल्के में न लें

गला हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है. इसका महत्व इसी बात से स्पष्ट है कि शरीर के भीतर पहुंचने वाले खाद्य-पदार्थ तथा हवा-पानी के प्रवेश का दायित्व इसी पर है. इसी महत्वपूर्ण कार्य को निभाने के कारण यही हिस्सा हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले भोजन, जल तथा वायु में उपस्थित किसी भी जहरीले तत्व से सबसे पहले प्रभावित होता है. हालांकि बाहरी रूप से देखने से हमारे नाक, गला व कान अलग-अलग दिखाई देते हैं परन्तु गले के भीतर जाकर इन तीनों अंगों की कोशिकाएं आपस में मिल जाती हैं. इस कारण इन तीनों अंगों में से किसी एक भी अंग में किसी प्रकार का संक्रमण हो जाता है तो उसका प्रभाव तीनों अंगों पर पड़ता है. टांसिल की समस्या का कारण किसी भी प्रकार का प्रदूषण या इन्फेक्शन हो सकता है जो हमारे शरीर में मुख व नाक से प्रवेश कर रहा हो. ये प्रदूषण या इन्फेक्शन वायरल या बैक्टीरियल किसी भी प्रकार के प्रदूषक से दूषित हवा सांस के माध्यम से जब शरीर में प्रवेश कर जाती है तो यह तुरंत समस्या पैदा कर सकती है. ऐसे स्थान जहां के वातावरण में बदबू, सीलन तथा अन्य किसी रासायनिक तत्व का समावेश हो ऐसे स्थानों में वायु के द्वारा निरन्तर जहरीले तत्वों के सम्पर्क में आने के कारण टांसिल रोग की समस्या खड़ी हो सकती है. बच्चों में इस रोग के ज्यादा मामले दृष्टिगत होते हैं क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. टांसिलाइटिस इस रोग की एक खतरनाक अवस्था होती है क्योंकि शरीर में एन्टीबाडीज होने के कारण प्रतिक्रिया होती रहती है. इस अवस्था में जैसे ही एंटीजन हमारे शरीर में प्रवेश करता है वैसे ही टांसिल टिश्यू उससे लड़ना शुरू कर देते हैं इससे जो एंटीजन बनता है वह शरीर के अन्य भागों में उपस्थित प्रोटीन के साथ प्रतिक्रिया करके वहां भी इसी प्रकार के एंटीबाडीज बना देता है. इन एंटीबाडीज का दिल के वॉल्व पर सीधा प्रभाव पड़ता है तथा दिल के वॉल्व खराब होने का खतरा पैदा हो जाता है. टांसिल तो ज्यादातर बच्चों को होता है परन्तु इसका दिल पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव किसी भी उम्र में पड़ सकता है.  इसके अतिरिक्त टांसिल से बैराफेंगिल्स एपशिश, न्यूट्राफरिंग्ल्स एपाशीश जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं. इस समस्या की पहचान कुछ प्रारंभिक लक्षण देखकर की जा सकती है जैसे- बार-बार गला खराब होना, गले में सूजन होना, दर्द होना, बार-बार बुखार आना आदि. यदि ऐसे ही लक्षण रोगी को बार-बार हो रहे हों. जैसे एक वर्ष में पांच या छह बार तो उसे टांसिल का आपरेशन करवा लेना चाहिए. लेजर आपरेशन में दो से तीन घंटे का समय लगता है और बिल्कुल चीर-फाड़ नहीं होती.  टांसिल से बचाव के लिए जरूरी है कि बच्चों को संतुलित भोजन दिया जाए ताकि उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो. सबसे जरूरी तो यह है कि टांसिल के लक्षण दिखते ही तुरंत डाक्टर से सम्पर्क करें. डाक्टर द्वारा दिए गए दवाई के कोर्स को पूरा करना चाहिए. अक्सर लोग थोड़ा सा आराम मिलते ही दवाई बंद कर देते हैं परंतु ऐसा करना रोग को और अधिक उग्र बना देता है. इस रोग के दौरान रोगी को खाना-पानी निगलने में तकलीफ होती है. ऐसे में बहुत से लोग कम खाते हैं, यह ठीक नहीं है. रोगी के शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति नरम या तरल खाद्य पदार्थ देकर की जारी चाहिए. इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है.
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